बैकुंठपुर जिला अस्पताल में नर्स की लापरवाही से मां की आंखों के सामने बुझ गया इकलौता चिराग, सिस्टम की संवेदनहीनता पर उठे सवाल।

कोरिया :: बैकुंठपुर जिला अस्पताल में 22 सितंबर 2024 को हुई एक दिल दहला देने वाली घटना ने हिला कर रख दिया। इस घटना में अमिया खलखो नाम की नर्स की लापरवाही के चलते सरगुजा जिले के उदयपुर निवासी मुनेंद्र प्रसाद के 26 वर्षीय बेटे चंद्रिका प्रसाद की मौत हो गई। सांस लेने में तकलीफ के बावजूद नर्स ने इसे गैस की समस्या बताकर गलत इंजेक्शन लगा दिया, जिससे चंद्रिका ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया। इस हृदयविदारक हादसे ने अस्पताल की स्वास्थ्य सेवाओं और सिस्टम की संवेदनहीनता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।मरीज के परिजन से नर्स ने कहा कि पैसा खर्चा करोगे तो प्राइवेट टाइप का इलाज किया जाएगा

मां का दर्द:
“मैडम, देख लीजिए, मेरा बेटा तड़प रहा है, सांस लेने में तकलीफ हो रही है!”—यह गुहार चंद्रिका की मां ने बार-बार नर्स अमिया खलखो से लगाई, लेकिन नर्स ने इसे अनसुना कर दिया। एक मां अपने बच्चे को बचाने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रही थी, पर नर्स की बेरुखी के आगे उसकी ममता हार गई। अस्पताल के भीतर अपने इकलौते बेटे की मौत देख, मां केवल चीख-चीख कर गिड़गिड़ाती रही, लेकिन अस्पताल के कर्मचारी संवेदनहीन बने रहे।

सिस्टम की कठोरता:
जब चंद्रिका की मां ने थक हार कर बैकुंठपुर की नेता प्रतिपक्ष अन्नपूर्णा प्रभाकर सिंह को फोन कर मदद मांगी, तो वह तुरंत अस्पताल पहुंचीं। उन्होंने नर्स अमिया खलखो से बात करने की कोशिश की, लेकिन नर्स ने नेता प्रतिपक्ष को भी अवहेलना करते हुए कहा, “जो करना है कर लो, मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता!” नर्स का यह रुख और उसके बदतमीजी भरे शब्द इस बात की ओर इशारा करते हैं कि सरकारी अस्पतालों में कर्मचारी किस हद तक जवाबदेही से दूर हो गए हैं।

नेता प्रतिपक्ष का हस्तक्षेप:
अन्नपूर्णा सिंह ने इस गंभीर मामले को गंभीरता से लेते हुए तुरंत जिला चिकित्सा अधिकारी (सीएमएचओ) को जानकारी दी मृतक चंद्रिका प्रसाद की बॉडी को नहीं छोड़ा जा रहा था तब फिर नेता प्रतिपक्ष ने जिला अस्पताल सी एम एचओ से फोन कर जानकारी बताई तब जाकर मृतक की शव को छोड़ा गया और नर्स अमिया खलखो के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। उन्होंने कहा, “इससे बड़ा दुख एक मां के लिए क्या हो सकता है कि उसकी आंखों के सामने उसका बच्चा दम तोड़ दे और कोई उसे बचाने की कोशिश तक न करे। यह सिर्फ एक मां की नहीं, बल्कि पूरे समाज की विफलता है।”

प्रशासन पर सवाल:
यह पहली बार नहीं है जब बैकुंठपुर जिला अस्पताल में इलाज में लापरवाही के आरोप लगे हैं। बार-बार ऐसी घटनाओं से मरीजों का अस्पताल पर से भरोसा उठता जा रहा है। लोग यहां इलाज की उम्मीद लेकर आते हैं, लेकिन अस्पताल की बदइंतजामी और संवेदनहीनता उन्हें निराश कर देती है।

यह दर्दनाक घटना सरकारी अस्पतालों में व्याप्त खामियों का एक और उदाहरण है। एक मां ने अपनी संतान खो दी, एक परिवार उजड़ गया, और हमारा सिस्टम सिर्फ अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ता नजर आ रहा है। अब देखना यह है कि इस घटना के बाद प्रशासन जागेगा या फिर एक और मां अपने बच्चे को खोने का दर्द लेकर लौटेगी।

आखिरी सवाल:
क्या इस बार सिस्टम संवेदनशीलता दिखाएगा, या फिर यह मामला भी अन्य घटनाओं की तरह ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा?

Edited By :: Newsnt24live 

error: Content is protected !!