*क्या नवीन जिला बनाकर दो विधायक बिल्कुल हो गए सुस्त सुस्त?*

*क्या जिला मात्र बना देने से ही 2023 का विधानसभा जीतेंगे दोनों विधायक*?

*जिला बनने के बाद नहीं खत्म हुई क्षेत्र की समस्याएं*
*अपने जिले की व्यवस्था पर नहीं है दोनों विधायक का ध्यान-*

एमसीबी: छत्तीसगढ़ के विधायक नंबर एक और विधायक नंबर दो जब तक नवीन जिला नहीं बना था तब तक ऊर्जा से लबरेज थे, जिला बनने के बाद क्या उनकी ऊर्जा खत्म हो गई? क्या जिला बनाने तक की ही थी उनकी जिम्मेदारी थी? क्योंकि जिला बनने के बाद भी समस्याएं जस की तस हैं वहीं दोनों विधायक पस्त नजर आ रहे हैं। नवीन जिला को लेकर दोनों विधायक खूब उछल कूद कर रहे थे बता रहे थे कि नवीन जिला बनाने के लिए है पूरी तरीके से लगे हुए हैं अब जैसे ही नवीन जिला बन गया जिला अस्तित्व में आ गया अब इसके बाद दोनों विधायक पस्त दिख रहे हैं, ऐसा लग रहा है कि जिला बनाने के बाद अब वह थक गए हैं, जिला बनने मात्र से ही उन्हें 2023 विधानसभा में जनता चुनकर ले आएगी क्योंकि उन्होंने क्षेत्र को बहुत बड़ी उपलब्धि दी है पर यह उपलब्धि कितने खींचातानी के बीच मिली है यह भी किसी से छुपा नहीं है फिर भी विधायकों का अति आत्मविश्वास समझ के परे है बाकी समस्या जस की तस है और विधायक समस्याओं को छोड़ चुनाव की तैयारी में मस्त है। भरतपुर सोनहत विधायक की बात की जाए या मनेंद्रगढ़ विधायक की दोनो आजकल चुनावी तैयारियों में व्यस्त हैं। दोनो ही जनता की मूल समस्याओं से अलग अपनी दोबारा जीत सुनिश्चित करने में लगे हुए हैं।
ज्ञात हो की प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल ने 15 अगस्त 2021 को मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर को नवीन जिला बनाने घोषणा की थी। मनेद्रगढ़ नगर वासियों ने हर्षोल्लास के साथ नगर भ्रमणकर खूब मिठाइयां बांटते हुए प्रदेश के मुखिया का एवं विधायकों को शुभकामनाएं बधाई दी। कोरिया जिले के विभाजन के बाद नया जिला मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर की घोषणा के बाद जिला मुख्यालय के कार्यालय का उद्घाटन 9 सितंबर 2022 जिला कलेक्टर एवं जिला पुलिस अधीक्षक कार्यालय एमसीबी जिला में जिला कलेक्टर एवं पुलिस अधीक्षक ने पदभार ग्रहण किया। सवाल यह है क्या जिला बनाने के बाद मनेद्रगढ़ नगर वासियों जैसे स्वास्थ्य विभाग से बेहतर सुबिधा मिल रही है? जिला पुलिस के रहते अवैध कारोबार क्या पूरी तरह से बंद हुआ? क्या राजस्व विभाग के मामले कम हुए? जिला के शिक्षा व्यवस्था में मनमानी नहीं चल रही? जिले के कई कार्यालय हैं जहां मनेद्रगढ़ नगर वासियों को चक्कर काटेने पड़ रहे है। आए दिन जिला कलेक्टर कार्यालय में ज्ञापन सौंप कर फरियादी की मांग पूरी हो रही है क्या?

*जिला बनने से बेहतर व्यवस्था हुआ विकास की थी उम्मीद-*

नवीन जिला की मांग लंबे समय से इसलिए हो रही थी ताकि क्षेत्र का बेहतर विकास हो सके और व्यवस्थाओं पर ज्यादा ध्यान दिया जा सकेगा क्योंकि क्षेत्रफल छोटा होगा और प्रशासनिक अधिकारियों के लिए पहुंचना आसान होगा पर जिला बनने को 1 साल होने को है पर अभी तक की स्थिति में सिर्फ विभाग का विस्तार ही हो रहा है लोगों को अभी भी विकास व सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा अभी भी कई काम के लिए पुराने जिले पर ही आश्रित है, जिला की सौगात देने वाले दोनों विधायक जिला बनने के बाद से सुस्त पड़ गए हैं आपसी प्रतिस्पर्धा में जुटे हुए हैं और अब उन्हें आगामी चुनाव की चिंता है इस बीच उनकी क्षेत्र की जनता का क्या हाल है उससे कोई लेना-देना नहीं।

*अपने जिले की व्यवस्था पर नहीं है दोनों विधायक का ध्यान-*

नवीन जिला एमसीबी जब गठित हुआ साथ ही जब जिले की घोषणा हुई तब दोनो विधायक भरतपुर सोनहत विधायक साथ ही मनेंद्रगढ़ विधायक श्रेय लेने की होड़ में सारी सीमाएं लांघ गए थे और उन्होंने इस दौरान कोरिया जिले को लेकर भी टिप्पणी की थी जिसमे जिला ले आए किला छोड़ आए यह उनका बयान था, अब जब नवीन जिला पूरी तरह अस्तित्व में आ चुका है दोनो विधायक अपनी जिम्मेदारियां भूल गए हैं, अब उन्हें जिले की व्यवस्था को लेकर कोई ध्यान नहीं है, ताजा मामला जो स्वास्थ्य विभाग का ही घटा जिसमे जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुली उसमे भी दोनो मौन ही रहे और कोई सार्थक पहल उनकी तरफ से नहीं देखा गया। जिले में आज भी मूलभूत सुविधाओं को लेकर ध्यान देने की जरूरत है जबकि जिला मूलभूत सुविधाओं को लेकर मोहताज है। अब विधायक चुनाव की तैयारियों में लग चुके हैं और वह अब अपनी नई पारी को लेकर चिंतित हैं उन्हे वर्तमान में जिले की व्यवस्था कैसे सुदृढ़ हो इसकी चिंता का समय नहीं है।

*नवीन जिले बनने के बाद से भी लोग है परेशान-*

जब कोरिया जिले से अलग होकर नवीन एमसीबी जिला अस्तित्व में आया तब यह लगा की नया जिला तेजी से विकास करेगा, लोगों की समस्याओं का निराकरण होगा साथ ही उन्हें उनकी जरूरत पर नवीन जिले के निवासी होने पर त्वरित सहायता मिलेगी, लेकिन हो इसके विपरीत रहा है, आज भी लोग परेशान हैं और अपनी परेशानी में उन्हे यही लग रहा है की अविभाजित जिले में ही उनका रहना सही था। आज प्रशासन और जनप्रतिनिधि आपस में तालमेल से तो काम जरूर कर रहें हैं लेकिन जनता को उसका लाभ उस तरह नहीं मिल पा रहा है जैसा उन्हे मिलना चाहिए।

*दो विधायक वाले जिले में प्रशासनिक व्यवस्था हलाकान करने वाली-*

दो-दो विधायक वाले जिले में प्रशासनिक व्यवस्था हलाकान करने वाली है,प्रशासन हावी है जनता परेशान है। प्रशासन जनप्रतिनिधियों की आवभगत में ही ज्यादा व्यस्त नजर आ रहा है। जनता के लिए समय ही नहीं है प्रशासनिक अधिकारियों के पास। दो दो विधायक होने के बाद जबकि जनता को त्वरित निराकरण का लाभ मिलना चाहिए था।

*स्वास्थ्य शिक्षा व राजस्व विभाग में सिर्फ भ्रष्टाचार-*

जिले के स्वास्थ्य विभाग और राजस्व विभाग में भ्रष्टाचार का बोलबाला है,शिक्षा विभाग में एकलव्य आदिवासी विद्यालय में हुए भ्रष्टाचार की जांच भी केवल इसलिए लंबित है जबकि जांच में भ्रष्टाचार प्रमाणित हो चुका है क्योंकि मामला कांग्रेस नेता के पिता से जुड़ा है साथ ही एक विधायक के निज सचिव से जुड़ा है। कुल मिलाकर प्रशासन भ्रष्टाचार रोक पाने में भी विफल है और भ्रष्टाचार से एकलव्य आदिवासी विद्यालय जो की आदिवासी छात्रों के लिए शासन की महवाकांक्षी योजना है वह भी अछूता नहीं है वहां भी बच्चों के हक एवम अधिकार को कांग्रेस नेता के पिता सहित कुछ पार्टी के ही लोग डकार गए हैं। कार्यवाही जो की जानी है वह इसलिए नहीं हो रही है क्योंकि मामला सत्ताधारी दल के एक नेता के पिता और एक विधायक के खास समर्थक से जुड़ा हुआ है।

*आबकारी विभाग में भी हुआ भ्रष्टाचार,एक ही शराब दुकान में हुई है 80 लाख के शराब की चोरी-*

भ्रष्टाचार का आलम यह है की आबकारी विभाग अंतर्गत संचालित एक शराब दुकान से 80 लाख की शराब गायब हो जाती है और उस गबन को छिपाने आबकारी विभाग जिले भर की शराब दुकानों से वसूली करता है और उस दुकान के गबन को छिपाता है। एक शराब दुकान से 80 लाख की शराब कहां गई इसकी जानकारी विभाग लेने की बजाए कार्यवाही करने की बजाए अन्य दुकानों को प्रेरित करता है की वह एक दुकान के गबन की भरपाई करें और भरपाई की राशि शराब में पानी मिलाकर वसूल करें। मामला सामने आने पर भी आबकारी विभाग के कानो पर जूं तक नहीं रेंगता न ही उन्हें किसी का भय ही सताता है और वह एक गबन को छिपाने अन्य को गबन करने प्रेरित करता है,इस बीच शराब में मिलावट के खेल को विभाग की भी मंजूरी मिलती है और शराब के शौकीनों से सेहत से खिलवाड़ की उन्हे खुली छूट मिल जाती है।

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